सृष्टि
[29/03, 10:49 AM] A S: मना रही सृष्टि अपना जन्म दिन,
सृष्टिकर्ता की चेतनशक्ति को नमन।
ज्ञात और अज्ञात सब वही है,
एक से अनेक का ही स्फुरण है।
युगों युगों से कर रहे वंदना,
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की आराधना।
पर जुडते गये संयोग इस दिन,
युगाब्द हो चाहे विक्रम संवत।
प्रकृति भी करती श्रृगाँर,
पहनती बहुरंगी पुष्पहार।
अपने प्रियतम ब्रह्म को देने,
सजाती मौसमी विविधता हार।
फिर हम रहे क्यो पिछे,
चले प्रकृति के साथ साथ।
वरन क्या वजूद है हमारा,
श्रृष्टा की सूक्ष्तम कृति उपहार।
नव वर्ष,शक्ति पूजा का विधान,
शक्ति संचय से होता जीवन धन्य।
[29/03, 10:51 AM] A S: राजेश कौरव “सुमित्र”(उ.श्रे.शि.)