सृष्टि की सृजनहार बेटियाँ
अब दब नहीं सकती आधी आबादी की ये बेटियाँ ,
जो दबाएँ इन्हें बन जाएँगी संहार की चिंगारियाँ ,
नहीं हैं अब भोग , विलास , वासना की ये कठपुतलियाँ ,
हैं ये प्रतिभाओं के आसमान पर चमकती बिजलियाँ.
अभावों की परिधियों को लाँघ के रुतवा है दिखा रहीं ,
गीता – बबिता , सिंधु – दीपा की दीप -शिखा जगमगा रही ,
देश की बेटियाँ अवनि , भावना , मोहना दुर्गा समान ,
हौंसलों की उड़ान से थामती वायुसेना की कमान .
नवदुर्गा , सरस्वती , लक्ष्मी सम पूजे देश – संसार ,
न समझो बेटियों को अब अबला , कमजोर देश – परिवार ,
वक्त आने पर बनती लक्ष्मीबाई की शौर्य तलवार ,
स्वामीभक्ति में बन जाती हैं ये पन्ना का त्याग – प्यार .
मिलता अब ” बेटी बचाओ – पढ़ाओ ” के संस्कारों से ,
उपहारों में ” राज श्री ” का मान – सम्मान सरकार से .
सिरमौर करती सभ्यता – संस्कृति को जगत में शान से ,
जल , थल , नभ में कमा रहीं नाम कामयाबी की ध्वजा से .
मैके को महका के बेटियाँ महकाती हैं ससुराल ,
बहन , बेटी , पत्नी , माँ बन फर्ज निभाती सालोसाल ,
कुल निशानी को कोख में क़त्ल कर न बना कब्रिस्तान ,
दो वंशों को जोड़कर ” मंजू ” सृजन करती है संतान .
रचनाकार – मंजू गुप्ता