सूफ़ियाना ( प्रभु से मोहब्बत )
ऐ ख़ुदा
क्यों दे रहा
मुझको सजा
मैं दूर हूँ तुझसे
तू क्यूँ बेबफ़ा…?
मेरा एहसास कहता है
तू मुझ में वसता है
फिर ये दिल्लगी कैसी..?
मुझे आँखों से
क्यों नही दिखता है…?
तू है मौजूद
हर फ़िजा
हर सामियानें में
फिर भी
तू है लापता
क्यूँ मेरे आशियाने में..?
ये तेरी गुस्ताख़ी को
मैं सहन करता हूँ
तू है खुदा मेरा
तू इश्क़ है मेरा
इसलिए तुझे माफ़
करता हूँ ।
मैं हूँ मोती
तेरे धागे का
तुझे में
अपने दिल में
पिरोता हूँ
रखता हूँ जिगर के
पास मैं अपने
तुझी से इत्तफ़ाक़
रखता हूँ ।
तू क्या जाने मोहब्बत
मेरे मौला
तुझे पाने के लिए
जिंदगी से
मैं क्या सौदा करता हूँ
नज़र भर देखने
तुझको
मैं अपना ज़िस्म
क़ुर्बान करता हूँ ।
अगर है मुझसे
इतनी मोहब्बत
तो ज़िस्म लेकर देख
देख इस
खूंखार दुनियां में
मैं कैसे कैसे
दर्द सहता हूँ…….