सूरज
हरता जग की कालिमा, करता है उजियार ।
अग्नि तत्व है जीव को , देता रवि उपहार ।।
सूरज नभ से दे रहा , दुनिया को संदेश ।
उठो उजालों से सजो , अपना – अपना वेश ।।
भोर दीप ले भानु जी , आये प्राची ओर ।
रंग रही है लालिमा , धरती की हर कोर ।।
सूरज पूरब से चले , लेकर आभा साथ ।
आँचल धरती का खिला , सजी लालिमा माथ ।।
प्रभा देख दिनेश की ,करते कलरव गान ।
लगे सुहानी भोर है , नव पीढ़ी यह जान ।।
डॉ. रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)