सूरज, बादल और तुम
सुनो
कभी कभी न
तुम मुझे सूरज जैसे लगते हो
एक दम समय के पाबंद!
चारों तरफ अपना ज्ञान का प्रकाश
बिखेरते रहते हो।
दिन भर ऊर्जा से भरपूर
इस छोर से उस छोर
भागते रहते हो।
डरते हैं लोग तुम्हारे गुस्से से
पर चार दिन न दिखो
तो व्याकुल हो जाते हैं!
एक छोटी सी गम की बदली भी
ढक देती है तुम्हें उदासी से।
तुम्हारी ऊष्मा से
मैं भी तो घबराती हूँ,
लेकिन प्राणों का संचार है तुमसे।
तुम्हारी कमी से
विटामिन’ एल’ की कमी होने लगती है!
सुनो!
कभी कभी न
तुम बादल जैसे लगते हो।
वैसे भी..
तुम्हारी और बादल की आदतें
बड़ी मिलती हैं
कभी ज़ोर से गरजते हो
डरा देते हो !
कभी वातावरण में
नमी फैला देते हो
कभी भिगो देते हो
मेरे तन और मन को
प्यार की बरसात बन।
कभी आते हो और
बिन कहे लौट जाते हो।
और कभी कभी तो
गरजते गरजते
बरस भी पड़ते हो
.. नैनों से….
अश्रु धार बन !
***धीरजा शर्मा**