Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 May 2024 · 1 min read

सूरज को

गीतिका
~~
सूरज को बाहों में भरने की चाहत।
उन्मुक्त हृदय से नभ में उड़ने की चाहत।

वक्त बहुत से पनप रही मेरे मन में,
बादल को मुट्ठी में करने की चाहत।

दूर बहुत तक फैला सुन्दर नीलगगन,
पंख पसारे ऊंचे उड़ने की चाहत।

बीत गया है वर्ष सभी का मनभावन,
नूतन के स्वागत में बढ़ने की चाहत।

भेद भुलाएं आपस में मिलजुल जाएं,
कर लें पूर्ण प्रगति के सपने की चाहत।
~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य

1 Like · 25 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from surenderpal vaidya
View all
You may also like:
आँचल की छाँह🙏
आँचल की छाँह🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
"मुर्गा"
Dr. Kishan tandon kranti
जीवन का कठिन चरण
जीवन का कठिन चरण
पूर्वार्थ
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
बदली-बदली सी तश्वीरें...
बदली-बदली सी तश्वीरें...
Dr Rajendra Singh kavi
पुस्तक
पुस्तक
Sangeeta Beniwal
तुम आंखें बंद कर लेना....!
तुम आंखें बंद कर लेना....!
VEDANTA PATEL
■दम हो तो...■
■दम हो तो...■
*प्रणय प्रभात*
जय श्री राम
जय श्री राम
Neha
*नयनों में तुम बस गए, रामलला अभिराम (गीत)*
*नयनों में तुम बस गए, रामलला अभिराम (गीत)*
Ravi Prakash
एक हसीं ख्वाब
एक हसीं ख्वाब
Mamta Rani
फूल अब खिलते नहीं , खुशबू का हमको पता नहीं
फूल अब खिलते नहीं , खुशबू का हमको पता नहीं
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
जो खास है जीवन में उसे आम ना करो।
जो खास है जीवन में उसे आम ना करो।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
कहीं वैराग का नशा है, तो कहीं मन को मिलती सजा है,
कहीं वैराग का नशा है, तो कहीं मन को मिलती सजा है,
Manisha Manjari
इस नये दौर में
इस नये दौर में
Surinder blackpen
समझा दिया
समझा दिया
sushil sarna
मुक्तक
मुक्तक
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
बसंत पंचमी
बसंत पंचमी
Mukesh Kumar Sonkar
उसकी सूरत में उलझे हैं नैना मेरे।
उसकी सूरत में उलझे हैं नैना मेरे।
Madhuri mahakash
मेरा देश एक अलग ही रसते पे बढ़ रहा है,
मेरा देश एक अलग ही रसते पे बढ़ रहा है,
नेताम आर सी
पुस्तकों की पुस्तकों में सैर
पुस्तकों की पुस्तकों में सैर
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Neelofar Khan
दो शे'र
दो शे'र
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
सदा दूर रहो गम की परछाइयों से,
सदा दूर रहो गम की परछाइयों से,
Ranjeet kumar patre
सप्तपदी
सप्तपदी
Arti Bhadauria
2565.पूर्णिका
2565.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
रिश्ता
रिश्ता
Dr fauzia Naseem shad
अंतहीन प्रश्न
अंतहीन प्रश्न
Shyam Sundar Subramanian
वसंत पंचमी
वसंत पंचमी
Dr. Upasana Pandey
तुमसे ही से दिन निकलता है मेरा,
तुमसे ही से दिन निकलता है मेरा,
इंजी. संजय श्रीवास्तव
Loading...