सूरज को रौशन करना है l
लपट तेज थी, लपक तेज थी,
जब वो जला था चमक तेज थी l
निस्तेज करती थी किरणें,
चाँद के घमंड और तारों की चाकरी को l
दमकती आंखें, चमकते बाल,
आग सा हृदय, आग की खाल l
जब वो चला था,
गति उसकी चपल तेज थी l
पर किसी ने इसे बुझाने को,
हर कसर ही उड़ेल दिया l
किसी ने शायद उसपर,
पूरा बादल ही छिड़क दिया l
बुझ कर अब ये खामोश बैठा है,
मात्र अब ये एक मिटटी के गोले जैसा है l
एक दिया ले आओ,
इसे फिर से जलाते हैं l
ठंडी आग को इसके,
फिर से भड़काते हैं l
इसके भयंकर आग में,
दुनिया को फिर जलने दो l
पथराये इस जग को,
पिघलकर स्वर्ण बनने दो l