सूरज को तो, फर्क नहीं पड़ता है l
कोई धूप, उजाला ले या ना ले,
सूरज को तो, फर्क नहीं पड़ता है l
मानव मन में सत्य रहे नहीं रहे,
सत्य को कभी फर्क नही पड़ता है ll
तड़पो, चीखो चिल्लाओ ओ रोओ,
आफत को तो, फर्क नहीं पड़ता है l
हरजाई चलन, ना हजम होता है ,
इश्क पर फर्क सहज सही पड़ता है ll
समाज संहार हो, देश विनाश हो ,
द्वेषी को तो, फर्क नहीं पड़ता है l
जीवन भले ही गर्क हो व नर्क हो ,
विषय प्यास को फर्क नहीं पड़ता है ll
अरविन्द व्यास “प्यास ”
व्योमत्न