सूरज अंकल जलते जलते देखो इक दिन जल मत जाना।
सूरज अंकल जलते जलते देखो इक दिन जल मत जाना।
जल जाओगे यदि धरती पर कौन उजाला ले आएगा।
फिर तो हम नन्हे बच्चों को अंधियारा यह धमकाएगा।
अंधियारे में भूत चोर का भय भी कितना बढ़ जाएगा।
मन कोने में दुबका भय भी बाहर आकर गुर्राएगा।
तुम उदास होकर जाओ पर रोज सुबह आकर मुस्काना।
सूरज अंकल जलते जलते देखो इक दिन जल मत जाना।
अंकल मेरे मन में है अक्सर एक प्रश्न आ मंडराता है।
तेल पिलाओ चाहे जितना लेकिन दीपक बुझ जाता है।
इतना नूर कहाँ से लाते जिसमें सभी नहाते रहते।
जितना बिखराते हो उतना फिर से वापस आ जाता है।
जिस दिन मूड रहेगा अच्छा उस दिन मुझको यह समझाना।
सूरज अंकल जलते जलते देखो इक दिन जल मत जाना।
मेघ घेर लेते हैं तब क्या खूब कुटाई होती है।
ठंडी के दिन में क्या संग में शाल रजाई होती है।
गर्मी के दिन में यूं तपते चिढ़े हुए हो गुस्सा हो।
मम्मी पापा के हाथों क्या कान घुमाई होती है।
जो भी है मन में कह देना अंकल बिल्कुल मत शर्माना।
सूरज अंकल जलते जलते देखो इक दिन जल मत जाना।