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29 Jul 2023 · 2 min read

सूरजपाल चौहान की कविता

ये दलितों की बस्ती है
——————-

बोतल महँगी है तो क्या,
थैली बहुत ही सस्ती है।
ये दलितों की बस्ती है।।

ब्रह्मा विष्णु इनके घर में,
क़दम-क़दम पर जय श्रीराम।
रात जगाते शेरोंवाली की …
करते कथा सत्यनारायण..।
पुरखों को जिसने मारा था,
उनकी ही कैसेट बजती है।
ये दलितों की बस्ती है।।

तू चूहड़ा और मैं चमार हूँ,
ये खटीक और वो कोली।
एक तो हम कभी हो ना पाए,
बन गई जगह-जगह टोली।
अपने मुक्तिदाता को भूले,
गैरों की झाँकी सजती है।
ये दलितों की बस्ती है।।

हर महीने वृन्दावन दौड़े,
माता वैष्णो छह-छह बार।
गुड़गाँवा की जात लगाता,
सोमनाथ को अब तैयार।
बेटी इसकी चार साल से,
दसवीं में ही पढ़ती है।
ये दलितों की बस्ती है।।

बेटा बजरंगी दल में है,
बाप बना भगवाधारी
भैया हिन्दू परिषद् में है,
बीजेपी में महतारी।
मन्दिर-मस्जिद में गोली,
इनके कन्धे से चलती है।
ये दलितों की बस्ती है।।

शुक्रवार को चौसर बढ़ती,
सोमवार को मुख लहरी।
विलियम पीती मंगलवार को,
शनिवार को नित ज़हरी।
नौ दुर्गे में इसी बस्ती में,
घर-घर ढोलक बजती है।
ये दलितों की बस्ती है।।

नकली बौद्धों की भी सुन लो,
कथनी करनी में अन्तर।
बात करे हैं बौद्ध धम्म की,
घर में पढ़ें वेद मन्तर।
बाबा साहेब की तस्वीर लगाते,
इनकी मैया मरती है।
ये दलितों की बस्ती है।।

औरों के त्यौहार मनाकर,
व्यर्थ ख़ुशी मनाते हैं।
हत्यारों को ईश मानकर,
गीत उन्हीं के गाते हैं।
चौदह अप्रैल को बाबा साहेब की जयन्ती,
याद ना इनको रहती है।
ये दलितों की बस्ती है।।

डोरीलाल है इसी बस्ती का,
कोटे से अफ़सर बन बैठा।
उसको इनकी क्या चिन्ता अब,
दूजों में घुसकर जा बैठा।
बेटा पढ़कर शर्माजी, और
बेटी बनी अवस्थी है।
ये दलितों की बस्ती है।।

भूल गए अपने पुरखों को,
महामही इन्हें याद नहीं।
अम्बेडकर, बिरसा, बुद्ध,
वीर ऊदल की याद नहीं।
झलकारी को ये क्या जानें,
इनकी वह क्या लगती है।
ये दलितों की बस्ती है।।

मैं भी लिखना सीख गया हूँ,
गीत, कहानी और कविता।
इनके दु:ख-दर्द की बातें,
मैं भी भला था, कहाँ लिखता।
कैसे समझाऊँ अपने लोगों को
चिन्ता यही खटकती है।
ये दलितों की बस्ती है।।
——–

Language: Hindi
635 Views
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