“सूनी मांग” पार्ट-2
गतांक 2 अप्रेल से …
अशोक के गाँव के ज्यादातर लोग फौज में भर्ती है. खुद अशोक भी यही चाहता था मगर ट्रेनिंग में पास ना हो पाने के कारण वो शहर चला गया कमाने के लिए. इस दौरान उसके चाचाजी एकलौता लड़का दिनेश नया नया फौज में भर्ती हुआ. उसे देख कर अशोक कभी कभी उदास हो जाता था मगर वे उसे समझाते रहते थे कि जो होता है वो अच्छे के लिए होता है. तुम मन छोटा मत कर और अशोक को बड़ा सुकून मिलता था.
धीरे धीरे समय बीतता गया.
…. अचानक एक दिन खबर आई कि एक आतंकवादी हमले में कुछ जवान शहीद हुए हैं उनमें दिनेश भी शामिल है. ये शायद गाँव की पहली घटना थी जिसमें एक लड़की बिना सुहागरात मनाये करीब एक साल इन्तजार करके विधवा हुई है. एक दिन पुजारी जी उधर से निकल रहे थे, दोनों समधी पास पास बैठे थे उन्होंने पुजारी जी को प्रणाम किया, पुजारी जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि जो होता है वो अच्छे के लिए होता है. आप मन छोटा न करें. अचानक उन दोनों को अशोक की याद आई, दोनों ने एक दूसरे को देखा, दोनों के चेहरे पर प्रसन्नता का भाव था. वे दोनों उठे और अशोक के घर की तरफ बढे…
***अब आगे…***
रास्ते में उनकी आपस में कोई बात नहीं हुई मगर दोनों एक ही बात पर सहमत थे ऐसा उनके हाव भाव से लग रहा था. अशोक के पिताजी घर पर ही मिल गए, वे इन दोनों के देखते ही सोचने लगे १० दिन पहले एक ने अपना इकलौता बेटा खोया है और एक ने अपनी बेटी का सुहाग, फिर भी आज दोनों प्रसन्न नजर आ रहे हैं. शायद ये ही पागलपन के शुरूआती लक्षण होते होंगे. दोनों समधी अशोक के पिताजी से उनका हाल चाल पूछ कर चुप हो गए थोड़ी देर बाद दिनेश के पिताजी बोले भैया आपके दो बेटे हैं और बड़े के भी दो संतान है, आप अशोक को मुझे दे दीजिये हमारी सूनी गोद भर जायेगी. अंजली के पिताजी बोले आप अशोक को मेरी अंजली की झोली में डाल दीजिए उसकी सूनी मांग भर जायेगी. अशोक के पिताजी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये दोनों क्या बोल रहे हैं, उन्होंने कहा मुझे थोड़ा समय दीजिये. वे दोनों अपने अपने घर चले गए मगर दोनों खुश थे. दिनेश के पिताजी को घर में घुसते देख उसकी माँ को गुस्सा आ गया वे चिढ कर बोली १० दिन पहले जवान बेटा मरा है और आप हंस रहे हो. उन्होंने कहा भाग्यवान मैं हंस नहीं रहा हूँ, मैं तो दिनेश के वापिस आने की बात सोच कर खुश हो रहा हूँ, पागल हो गए को क्या? जिस पुत्र को खुद आपने अग्नि के हवाले किया है उसके वापिस आने की बात सोच रहे हो, धीरज रख भाग्यवान मैं दिनेश की जगह अशोक को अपना बेटा बनाने की सोच रहा हूँ, अशोक के बारे में सुनते ही वे भी खुशी से रो पड़ी और बोली अगर ऐसा हो जाए तो मैं समझूंगी मेरा दिनेश वापिस आ गया. क्या ऐसा हो पायेगा. क्या अशोक के घरवाले मानेंगे? आदि कई सवाल उन्हें घेरने लगे. …….
……… उधर यही हाल अंजली के पिताजी का घर में घुसते ही हुआ उन्हें भी सबकी जली कटी सुनने को मिली. पर जब उन्होंने दिनेश की जगह अशोक को रखने के लिए कहा तो कोई उनका विरोध नहीं कर पाया. अब बात थी सिर्फ अंजली की. वो ये सुन कर क्या सोचेगी और क्या बोलेगी. अंजली की माँ और बुआ ने इसकी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हुए उसे मनाने की बात कही. अगले दिन पूरे गाँव में अजीब सी ख़ुशी का माहौल बनने लगा था. कोई कुछ नहीं जानता था मगर हर कोई एक दूसरे को देख कर खुश हो रहा था. शाम तक सरपंच तक ये बात पहुंची. उन्होंने पंचायत बुलाई और आज के लिए गाँव के 5 बुजुर्ग लोगों को नियुक्त कर के खुद जनता के बीच आकर बैठ गए. लोगों ने पुछा तो वे बोले ये 3 परिवारों का मामला हैं इसका फैसला अनुभव और सहमति से होना है. इसमे मेरा ज्ञान कोई काम का नहीं है. मगर सबने कहा तो वे भी पंचों के साथ आकर बैठ गए. अब ना तो कोई मुलजिम है ना ही कोई मुजरिम, बात शुरू करें तो कैसे. तभी पुजारी जी बोले जजमान हम लोग यहाँ क्यों इकट्ठे हुए हैं. किसी को कुछ पता नहीं था तो सरपंच बोला कि मैंने ऐसा सुना है कि दिनेश के पिता अशोक को अपने घर का चिराग बनाना चाहते हैं और अंजली के पिता उसे अंजली का जीवन साथी. अब मामला ये है कि ना तो अशोक को पता है कि यहाँ क्या हो रहा है और ना ही उसके पिता समझ पा रहे हैं कि क्या कहे. एक बुजुर्ग पंच बोले अशोक को बुलाओ. अशोक के पिताजी बोले वो अगली बस से आने वाला है. थोड़ी देर में अशोक आ गया, सबको इस तरह इकट्ठा देख कर उसे लगा कहीं पिताजी तो.. तभी उसे अपने पिताजी दिखाई दिए वे नजदीक आये और उन्होंने सारी बात बताई. तो उसने पहले अंजली से बात करने की इच्छा जताई, सब ने हाँ कह दी कुछ दोस्त और कुछ लड़कियों को साथ लेकर वो अंजली के घर गया उसने अकेले में अंजली से बात की और पुछा कि मुझे दो लोग मांग रहे हैं मुझे क्या करना चाहिए. तभी अंजली की दादी बोली बेटा तुम्हे उनका पुत्र बन कर इससे शादी करके अपने पिता की चिंता दूर करनी चाहिए. दादी की बात से अंजली भी सहमत दिखी अचानक पूरे गाँव में रौशनी छा गई. हर घर में ख़ुशी का माहौल हो गया. पंचों ने दादी की बात को मान्य रखते हुए अशोक के पिता को मनाया कि वे दिनेश की जगह अशोक को देकर दोनों घरों में खुशिया लाकर खुद भी खुश हो जाए.