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31 May 2019 · 1 min read

सूना सूना लगता है

दिनांक 31/5/19

(छंदमुक्त कविता)

सूना सूना आँगना
सूने सूने वृक्ष
पंछी सब हैं घोसले
सूरज का है तेज
बाग बगीचे घर
सब सूना सूना
लगता है

प्रिय का है
चेहरा मुरझाया
पिया गयो परदेस
राह जोहते
नैयना दो
जग सूना सूना
लगता है

माँ बाप का
बेटा लाड़ला
लड़ता सीमा पर
हर पल उनका
दिल धडकता
घर सूना सूना
लगता है

बिटिया पहने
कंगना
खनकाऐ घर भर में
चिड़ियाँ बन
चेहके अंगना
दिल बाग बाग
हो जाऐ
जाए जब पिया संग
तब घर सूना सूना
लगता है

(और आखिर में)

मौत है
एक धोखा
कब अकेला
छोड जाऐ
साथी बिन
जीवन अब तो
सूना सूना
लगता है

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

Language: Hindi
436 Views
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