सूखा शजर
ज़िंदगी बन गई है सूखा शज़र।
कटे जा रहा है ये तन्हा सफ़र।
तुमसे बावस्ता थी मेरी खुशियां
झड़े पत्ते रह गई मैं,बस ठूंठ भर।
कभी खुशियों से भरा था आंगन
आज एक परिंदा भी न आये नजर।
मुस्कुराहटें भूली इधर का रास्ता
उदासी यहां आकर गई है ठहर।
इंतज़ार तेरा मुझे रहा है उम्र भर
रह गई मैं बन कर सूखा शज़र।
सुरिंदर कौर