सूक्तियाँ
भाग्य अपेक्षित कर्मविहीन इच्छाओं ,अभिलाषाओं की परिणति निराशाजनक होती है,
कर्म प्रधान जीवन चक्र निर्मित प्रारब्ध की अनुभूति आशाजनक होती है ,
भाग्य जीवन की बिसात पर बिछी हुई माया प्रधान ध्यूत क्रीडा है ,
प्रारब्ध यथार्थ के धरातल पर लिखी हुई कर्म प्रधान जीवन लीला है ,