सुहानी भोर
आई सुहानी भोर फैला उजियारा चहुँ ओर
प्रकृति की मनोरम छटा छाई दूर दूर
दूर हो चूका तम बीती निशा के साथ
नवयुग अभ्युदय का हो रहा आगाज
लालिमा लिए आसमां सज रहा
मानो नव वधु ओढ़े लाल चुनर
स्वर्ण सम करे उजागर चहुँ ओर रवि
आशा उमंगें लिए हृदय में छवि
पँछी कलरव करते जैसे
नवयुग के भारत का कर रहे गुणगान हो
नन्हा पौधा निकल रहा धरती पर
बना रहा अटल पहचान हो
ओश की बूँदें मानो स्वेत चादर फैली
निज अस्तित्व का बजा रही बिगुल
कुसुम मन्द मन्द मुस्कान लिए
स्वतन्त्रता का कर रहे आह्वान
आई सुहानी भोर फैला उजियारा चहुँ ओर