“सुहागन की अर्थी”
लाल जोड़े में सुहागन ससुराल आयी थी,
आज अर्थी पे जा रही है लाल जोड़े में।
चमन के फूल भी खामोशी से मिलने चले,
कली कली भी तड़प रही हैं मिलने के लिए।
जिसको मैंने सजाया था हार बनके ,
आज बिखर गए हैं हम पैरों के ताले।
क्यों रो रहे हो सनम मेरे ,
मैं जा रही हूं निशानियां लेके।
हाथ मेरी चूडियों से भरी,
पांव में लगी महावर भरके।
घूँघट उठा उठा के देखा था जमाने ने मुझे,
आज फिर देखते हैं वो चुनर हटा हटा के।
सजी हुई हूँ आज तेरी नई दुल्हन बनके,
क्यों रो रहे हो सनम सिसकियाँ लेके।
जो आये थे लेने मुझे मेरे द्वारे पे,
वो जा रहे है साथ द्वारे से छोड़ने मुझे।
मैं सजी हूं सनम लाल जोड़े में,
कल भी तेरी दुल्हन थी आज भी दुल्हन तेरी।
लोग ऐसे रोये थे मेरी विदाई में,
आज भी रो रहे है विदाई में मेरे।
फिर मिलूँगी सनम ना आँसू बहाओ,
क्यूँ रो रहे हो सनम हिचकियाँ लेके।
भरा था फूल से दामन हाथ मेहंदी से सजे ,
आज भी सजी हूं फूलों से ,हाथ लड्डू से भरे।
मैं जा रही हूं सनम तेरी निशानिया लेके,
तेरे प्यार की रंगों में रंगी चुनर ओढके।
मेरी जिंदगी के मालिक थे तुम्ही,
आज भी दिल तुम्हरा है देख लो छूके।
घूँघट उठा के जो मांग तूने भरी,
जा रही हुँ मांग भरके ,सजन तेरी होके।
साथ थी जमीं पर कुछ उम्र के लिए,
साथ अब भी रहूंगी ,सितारोँ में ताउम्र के लिए।
क्यूँ रो रहे हो सनम सिसकियाँ लेके,
मै जा रही हूँ सनम तेरी निशानियां लेके।।
लाल जोड़े में सुहागन आयी थी,
आज अर्थी पे जा रही है लाल जोड़े में।।
लेखिका:-एकता श्रीवास्तव
प्रयागराज✍️