“सुस्त होती जिंदगी”
“सुस्त होती जिंदगी”
सुन्न हो गया संसार सारा
व्यक्तित्व सब सुस्ताने लगे हैं
मोबाईल से हमने करली यारी
डिजीटल हसीं मुस्कुराने लगे हैं,
पैसे कमाने की आपा-धापी में
समझ को हम तजने लगे हैं
महंगाई के बोझ से बचने की खातिर
दिन-रात हम भगने लगे हैं,
बच्चों संग अब हम घोड़ा नहीं बनते
गुड नाईट, गुड मोर्निगं से काम चलाने लगे हैं
साथ खाना खाकर शाम को गप्पे कैसे लड़ाएं ?
फेसबुक के जंजाल में पांव धंसने लगे हैं,
एकल परिवार बने अब हमारे
रविवार को पिकनिक पर जाने लगे हैं
मन की शांति हुई हमसे कोसों दूर
कलयुग में कदम ज्यू धरने लगे हैं।