सुविचारो का बोझ
व्यंग्य-
सुविचारों का बोझ
यह कहने या सुनने में अजीब लगता है कि सुविचार बोझ कैसे हो सकता है पर जिस चीज की उपयोगिता न हो और उसे ढोना पड़े तो हम उसे बोझ ही कहते हैं यही हाल आजकल सुविचारों का है । उपयोगिता की दृष्टि में महान है पर धारण कोई करने को तैयार नहीं । सब एक दूसरे पर डालने को तुले है । जैसे फुटबॉल के मैदान में साथी खिलाड़ी अपनी टीम के साथी को गेंद पास करता है कि तुम आगे बढाओ। यही स्थिति सुविचारों की है । सुबह की शुरुआत इसी मैसेज से होती है पर कोई अच्छी बात धारण नहीं करता जैसे वह हमारे दुश्मनो के लिए बनी हैं । दो चार दिन वही मैसेज पड़ा रहने के बाद हम दूसरे मित्रों तक भेजकर अपने को हल्का महसूस करते हैं जैसे फुटबॉल के मैदान में गेंद पास करके अपने सहयोग से मुक्त महसूस किया करते हैं ।
एक दिन मोबाइल की मेमोरी ने याद दिलाया कि आपकी मेमोरी फुल हो गयी है मैं चौंक कर देखा तो सारी मेमोरी शुभ प्रभात और सुविचारो से भरी पड़ी है । उसमें से कुछ को तो पढा था कुछ पढ़ें थे या नहीं वो याद नहीं। अब उसमें कोई ऐसा विचार नहीं था जिसे मैंने पिछले कुछ दिनों में अपनाया हो। तो लगा कि इसे अपने मित्रों तक भेज दिया जाए इससे बोझ हल्का होगा ।
यही स्थिति सुविचारो को बोझ युक्त बनाती हैं । लोग कुछ भी भूले दिवस विशेष, शुभ प्रभात, सुविचार भेजना नहीं भूलते। मजे की बात यह है कि जो सुविचार भेजते हैं उनमें से कई कुविचारों की खान है । फिर भी सुविचारो से मेमोरी भरे रहने के कारण महान है । यह भी सुविचारो की श्रेणी में आता है कि आप भले कैसे भी हो पर उपदेश ,संदेश की घुट्टी जरा सुविचारो के कथन वाली हो तो आप महान हैं । सचमुच आजकल के युग के सच्चे इंसान हैं । ऐसे लगनशील दृढ़ संकल्प शक्ति वाले सुविचार प्रेषको को मेरा -विन्ध्य प्रकाश मिश्र का नमन जो मन लगाकर भी बेमन से सुविचार ढकेलने है और ढकोसला करते हैं ।
…..✍ विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र
नरई संग्रामगढ प्रतापगढ उ प्र-
9198989831