सुलोचना
सुलोचना
हाय रे मेरी सुलोचना
जिसे भी देख ठीक से देखना
एक नही सौ सौ बार देखना
तुम हो मेरी सुलोचना
हाय रे मेरी …….
जो जो नही दिखता
उसे भी देखना
रहस्य से पर्दा उठा
सबके सामने परोसना
हाय रे मेरी …..
जिसे भी देखना
अनुमान से देखना
जांचना और परखना
अपने अंतर्दृष्टि से देखना
हाय रे मेरी…..
तृण से ताड़ तक
राई के पहाड़ तक
अपने ही ज्ञानचछू से देखना
हाय रे मेरी…….
जिंदगी है क्या? इसे भी देखना!
लोभ ,मोह,क्रोध को फेकना।
हर रोज मेहनत की रोटी सेकना
जिसे भी देखना
बारंम्बार देखना।
हाय रे मेरी…….
आत्मा को सुकून हो
परमात्मा को कबूल हो
क्या देखना है?ये तो देखना
बस यही देखना ,बस यही देखना।
हाय रे मेरी….
रचनाकार
संतोष कुमार मिरी
शिक्षक जिला दुर्ग