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27 Sep 2024 · 1 min read

सुलगती भीड़

भीड़ ध्यान नहीं देती,
चेहरे के भावों पर,
दर्द से उठती आहों पर,
आँखों से बहते आँसुओं पर,
रोमों से फूटते जिस्म के खून पर…

भीड़ तो बस आवाज सुनती है,
मशीन की तरह काम करती है,
अपना काम समाप्त करती हैं,
चालबाज चोरों की तरह भाग जाती है,
और चेहरों में छिप जाती है…

भीड़ कहाँ से आती है,
भीड़ कहाँ जाती है पता नहीं…

भीड़ इंसान नहीं भेड़ों का समूह होती है,
कुंठित, वेवश और बीमार होती है,
सत्ता का हमेशा शिकार होती है,
भीड़ के दिल नहीं, दिमाग नहीं,
बस हल्लाबोल होती है…

एक भेड़ जो करती है,
भीड़ वही शुरू कर देती है,
क्योंकि भीड़ परेशान होती है,
अन्याय से, ताकत से, गरीबी से,
सुलझ जाने वाली नासुलझी समस्याओं से…

भीड़ का कोई चेहरा नहीं, शरीर नहीं,
भीड़ तो भीड़ होती है, जंगल की आग होती है…!!!

प्रशांत सोलंकी…… prअstya

Language: Hindi
1 Like · 30 Views
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