सुलगती आग
सुलगती आग
होती है भयावह
न जाने
कब फट जाये
किसी ज्वालामुखी की तरह
और कर डाले विनाश
सभ्यता का
पांच पतियों से निभाती
संयमित, रिश्ते संभालती
दिव्य जन्मा
कृष्न सखी
महारानी द्रोपदी
मूर्ख नहीं थी
जो कह बैठी
‘ अंधे का पुत्र अंधा ‘
अतिथि से
वह विवश थी
उस क्रोध से
जो सुलग रहा था
मन की गहराई में
वर्षों से
और तत्पर था
फट जाने को ।
शशि महाजन – लेखिका