1. सुर्यकवि पंडित लखमीचन्द जी यो श्रृद्धांजलि अर्पित
ब्रह्मा कहूँ के विष्णु कहदूँ के कहूँ शिव भगवान तनै,
सूर्यकवी श्री लख्मीचंद जी यो पूजै सकल जहान तनै ..!!टेक!!
पन्द्रा सात उन्नीस सौ तीन में , देह धार मनुष की आया था
शुभ मुहूर्त में पैदा होग्या लेहरया भाग सवाया था
उदमी राम घर जन्म लिया , जांटी में आनन्द छाया था
धन – धन सै वा माँ भरथो , जिसकी कोख तैं जाया था
गऊओं को खुब चराया था , ना स्कूल का लिया ज्ञान तनैं..!!१!!
गुरु मानसिंह नै धरा हाथ शीश पै , फेर नये नये छंद बणावण लाग्या
बहरे तबिल सोणी निहालदे सवैये काफिये गावण लाग्या,
पहला सांग करया हरिश्न्द्र जिनैं सारा जगत सरावण लाग्या,
माणस नहीं यो गन्धर्व सै नयूं जन जन जिक्र चलावण लाग्या
बराबरियां नै हरावण लाग्या , ना करया कदे अभिमान तनैं..!!२!!
चार वेद और छ: शास्त्र दस दिशा का ध्यान किया,
कुए और प्याऊ बनवाई गऊओं का भी मान किया,
ब्रह्म ज्ञान का पाठ सुनाकै जन जन का कल्याण किया,
जति सती का धर्म बताया कथा बीच व्याख्यान किया,
मोह को तज तप दान किया , राखी ऊँची श्यान तनैं..!!३!!
श्री लख्मीचन्द की टहल करग्या एक चन्दन लाल बजाणे में,
श्री सतबीर सिंह नै ज्ञान पाकै , ना छोड़ी कसर कोए गाणे में,
श्रीनिवास शर्मा भी नामी होग्या धर्म के ग्रन्थ बणाणे मे,
कपीन्द्र शर्मा गुरुजी मिलगे , जो लाखण माजरा हरियाणे में,
मनजीत पाहसोरिया छन्द लाणे में यो होया कुदरती ध्यान तनैं..!!४!!
रचनाकार:- पं मनजीत पहासौरिया
कोषाध्यक्ष :- म्हारी संस्कृति म्हारा स्वाभिमान संगठन
फोन नं०:-9467354911*