सुर्ख सबेरा
दानिशवरों को पता
है ज़ात मेरी!
जिनसे हुआ करती है
मुलाकात मेरी!!
ना समझे हैं
ना समझेंगे
अहमक़ लोग
कभी बात मेरी!!
अपना ज़मीर
जो बेच दिए
वही पूछते हैं
औकात मेरी!!
सुर्ख सुबह का
पैग़ाम दे रही
ज़ुल्मत की
यह रात मेरी!!
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