सुरभि का उजाला
हृदय उषा का तुम संगीत हो , महकी सुबह का तुम ही गीत हो
सदियों की तुम प्राचीन रीत हो , युगों युगों के तुम मन मीत हो……….
मेरी बगिया की हरियाली में , हर सुमन की हर डाली में
मेरे हृदय की हर धड़कन में , है तुमने ही तो डेरा डाला
मेरे शब्दों के तुम सजीव हो, मेरे अस्तित्व के सबसे करीब हो
युगों युगों के तुम मन मीत हो……….
मेरे पलकों पर ठहरा पानी, तुम ही हो मेरी प्रीत पुरानी
मेरे अधरों पर तुम पराग हो, तुम ही गुंजित प्रेम राग हो
तुम जीवन की मेरी धारा, सांसो में ढलती मेरी भीत हो
युगों युगों के तुम मन मीत हो……….
मेरी सुरभि का तुम ही उजाला, भावों की तुम अनुपम माला
अपूर्ण मिलन की असहय पीढ़ हो, संवेदना की मेरी रीढ़ हो
मेरे वोध की तुम प्रथम वेदना, मेरे अवोध की तुम ही जीत हो
युगों युगों के तुम मन मीत हो……….
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