सुरत तुम्हारी
कोई तो ऐसी सुबह आए,
खोलूं आंखें तुम्हारी सुरत दिख जाए।
चाहें दिखो तुम पलभर को हीं,
सदियों तलक मेरी आंखों में अक्श तेरा ठहर जाए।
हो चाहत जब भी तुम्हें देखने की,
आईने के पास खुद को निहार लूं।
आंखों में जो बस गए हो इस तरह,
आईने से हीं तुम्हारी नज़र उतार लूं।
आते तो हो पल भर को हीं,
छोड़े जाते हो खुशबू फिज़ाओं में।
नज़रों के सामने रहते नहीं हो,
छुप के रहते हो मेरी दुआओं में।
मांगें भी तो क्या मांगें, चाहें भी तो क्या चाहें,
जब से मिले हो आसमां है मेरी हथेली में।
एक तुम्हें पा कर कोई आरज़ू ना रही,
तुम्हीं बताओ तुमसा है क्या कोई दूजा और जमाने में।