सुमन
बहकती चंचला का मन, खिला जब तन बदन चहका।
बसंती रूप है पावन, खिली जब धूप तन दहका ।
पवन चलती सुमन महके, खिलें जब क्यारियाँ देखें।
गुलाबी रंग है मादक, मचलता रूप है बहका।
सुगंधित है मलय पावन, सुहाना मन बसंती हो।
महकते भाव मधुवन में, सुहाना तन बसंती हो।
सुमन की शोखियाँ चंचल,भ्रमर का मन सहज बहका।
चहकता जो खिला उपवन,हृदय आँगन बसंती हो।
सुशोभित हो सुमन वरमा,ल बनके प्रिय तुम्हारे भी।
सुमेलित हो सुमन गलमा,ल ,बनके प्रिय हमारे भी।
दिलों की चाहतों को चा,हता, मधुमास मौसम है ।
सुयोजित हो सुमन प्रिय मा,ल बन के द्वार द्वारे भी।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम