सुभाषचन्द्र बोष
एक लाल सपूत हुआ माँ का,
जो चन्द्र सुभाष कहाया था।
सन तैंतालीस में बोष वीर,
आजादी बिगुल बजाया था।
जय हिंद की नारा दिया हमें,
अजाद हिन्द दल तैयार किया।
अगुवा बन करके निकल पड़ा,
सर्वस्व देश पर वार दिया।
आजादी तुमको मैं दूंगा,
कुछ लोग लहू मुझको दे दो।
वो कहता सुनो देश वालों,
संघर्ष करो दुश्मन खेदो।
संघर्ष से आत्मविश्वास मिला,
संघर्ष ने मनुज बनाया है।
संघर्ष डगर पर जब निकला,
अति साहस खुद पाया है।
अन्यायी के अन्याय से भी,
अन्याय सहन अपराध बड़ा।
याचना नहीं संघर्ष करो,
जीतेगा जो जिद आन खड़ा।
हिंसक से बात अहिंसा की,
आशा करना बेमानी है।
अनुनय से भीख तो मिलती,
आजादी लड़कर पानी है।
जाने कितने आजादी के,
दीवाने फांसी झूल गए।
सत्ता में बैठे शासक गण,
उन सब वीरों को भूल गए।
माँ भारत के महावीरों में,
यह बोष भी बहुत दुलारा है।
नेता सुभाष को झुक करके,
श्रद्धा से नमन हमारा है।
सतीश शर्मा सृजन, लखनऊ.