सुभर प्रकृति शृंगार
?सुभर प्रकृति शृंगार?
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गगन धरा की प्रीत मैं , देख रहा हूँ मीत।
मिली गगन के प्रेम घन , धरा हुई नवनीत।।
बूँदें छमछम नृत्य कर , आँगन भरें उमंग।
शीत पवन के स्पर्श से , तन में उठे तरंग।।
मौसम में है ताज़गी , शीतलता चहुँ ओर।
गैसें सारी धुल गई , निर्मलता करे विभोर।।
शांत मनोहर कांतिमय , लगे प्रकृति का रूप।
तरुवर पल्लव पुष्प का , शोभा लिए स्वरूप।।
प्रीतम चिंतन मन करे , नूतन भरे विचार।
नयनों सम्मुख जब रहे , सुभर प्रकृति शृंगार।।
कोरोना की हार में , हम सबकी है जीत।
सामाजिक दूरी निभा , करें सभी से प्रीत।।
विकट परीक्षा देखके , होना मत भयभीत।
धैर्य लग्न के राग से , सजे जीत संगीत।।
?आर.एस.प्रीतम?
नोट–कोरोना हराना है , घर से बाहर नहीं जाना है।
खुद सुरक्षित रहना है औरों को भी बनाना है।।