सुबह
सुबह सवेरे शुरू हो जाती जीवन की आपाधापी
भागम भाग दिनचर्या बनी है,हलचल विश्वव्यापी।
उफ्फ!शरद की ऊषा,कोहरे के घूंघट में ठुमक चलत मतवाली
ओस बनी हार मोतियन का, रची अधर नव सूरज की लाली।
ओढ़ चुनरिया नीलम अंंबर की, पहने धरा वस्त्र हरियाली।
सुगंधित सुमन मुस्कान लिए है भोर खिली मतवाली।
शरद प्रभात की सुबह लिए हैं हाथ चाय की प्याली।
मेरी बगिया में है आकर कुकती, मधुर कोयल काली।
ऋतु हेमंत मेंरंग बिरंगे फूलों से भरती तरु डाली।
छटे कोहरा धीरे धीरे,धूप खिली उजियाली
नीलम शर्मा