“सुबह की धूप आशा है”
विधान :- विजात छंदाधारित गीत
मात्राभार :- १२२२ १२२२
सुबह की धूप आशा है।
विवशता ही निराशा है।।
सुखों की आश जीवन में।
न होती काश जीवन में।।
न होती वर्जना मन में।
न होती वेदना मन में।।
हृदयवन को हरा कर दे।
वही सच्ची दिलाशा है।।
सुबह की धूप आशा है।
विवशता ही निराशा है।।
किसी को जीत मिलती है।
किसी को हार खलती है।।
कभी खुशियाँ बिखर जातीं।
कभी खुशियाँ नज़र आतीं।।
कभी उम्मीद अपनों से।
कभी होती हताशा है।।
सुबह की धूप आशा है।
विवशता ही निराशा है।।
नगों पर धूप खिलती है।
बरफ बनकर पिघलती है।।
घनाघन मेघ घिरते हैं ।
पवन को देख डरते हैं ।।
दिवाकर जब उदित होते।
नहीं दिखता कुहासा है ।।
सुबह की धूप आशा है।
विवशता ही निराशा है।।
किसी की मूक अभिलाषा।
हृदय में कौंधती आशा।।
किसी की डूबती आशा।
हृदय को रौंदती आशा।
ज़रा सी जिंदगानी है।
जिसे रब ने तराशा है।।
सुबह की धूप आशा है।
विवशता ही निराशा है।।
पूर्णतः स्वरचित व स्वप्रमाणित
रचनाकार का पूरा नाम:- जगदीश शर्मा ‘सहज’
शहर का नाम:- अशोकनगर, मध्यप्रदेश