” सुबह की खीटपीट “
सुबह का सूरज ले कर आता नया सवेरा ,
मेरे घर होता रोज़ नया बखेड़ा ।
सुबह उठती मैं लेती अंगड़ाई ,
तभी मां मेरी ले आती कढ़ाई ।
छुरी – कांटा – कलछी का शोर ,
मेरा हृदय करता कामचोर ।
कुकर जब सीटी बजाती ,
मेरी भी सीटी – बीटी गुल हो जाती ।
आलू – मटर – गोभी तो बहुत हंसाती ,
फिर प्याज – मिर्च बड़ा रूलाती ।
आटा तो जैसे – तैसे गुंथ जाता ,
फिर भी रोटी भारत का नक्शा बन जाता ।
चीनी चाय में जब ज्यादा पड़ जाती ,
गले से न वो निगली जाती ।
फिर दाल – चावल ने करी शैतानी ,
कभी पड़ता ज्यादा और कभी पड़ता कम पानी ।
रोज़ हो जाती मैं हैरान ,
सुबह की खीटपीट करती परेशान ।
✍️ज्योति
नई दिल्ली
( पहली बार जब मैंने रसोई घर में गयी भोजन पकाने – 14 अप्रैल 2017)