###सुबह का वकत###
सुबह का वकत, जब भोर हो रही
मन को मेरे आज झकझोर वो रही
वो बीती चांदनी सी रात , आज
सुबह का इन्तेजार ,फिर रात हो रही !!
कसक सी दिल में उमड़ रही
मन को फिर से बेकरार कर रही
शीतल चंचल सा , यह जिगर
मिलने की आस में ,बोर हो रही !!
टपकती वो बारिश की बूंदे, मेरे
बुझे से इस मन को हर्षित कर रही
बस यह कह रही , न कर मन
उदास , मैं यह सन्देश दे रही !!
रात की वो उदासी, चांदनी की रात ने
अपने शीतल मय प्रकाश से मिटा डाली
फिर से भोर हो चली, उस सूरज की
रौशनी, मुझ को झिंझोड़ फिर रही !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ