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9 May 2017 · 1 min read

सुबह का आगमन-नज़्म

एक नज़्म हुई है..

एक और नया दिन
मगर फिर तेरे बिन
रात कटी है करवटों में
आधी तो चांद तारे गिन।

थोड़ा शोर मचा था बस्ती में
देखा तो सुबह आ चुकी थी,
अँधेरी रात में डूबी चांदनी
मानों दूध में नहा चुकी थी।

सुबह अकेली नहीं थी
सूरज भी उसके साथ था
मासूमियत को जगाने में
शायद उसी का हाथ था।

सुबह हर रोज़ जैसी थी
मगर अबतक अनदेखी थी,
ये पहली सुबह थी जो
मैंने जाग कर देखी थी।

“अभिनव”

Language: Hindi
Tag: लेख
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