सुन सको तो सुन लो
ज़ुल्मत की इस रात में भी
कोई किरन आती तो है
एक नई सुबह का पैगाम
बेचैन हवा लाती तो है…
(१)
लूटेरों और कातिलों ने
सब कुछ हमसे छिन लिया
फिर भी इंसानी जज़्बात की
हमारे पास थाती तो है…
(२)
अपनी आख़िरी सांस तक
फैलाएंगे हम रोशनी
अगर तेल चूक गया तो क्या
भीगी हुई बाती तो है…
(३)
फ़ाख़्ता से शाहीन तक
सभी जहां ख़ामोश हैं
चलो धीमे सुर में ही सही
कोई कोयल गाती तो है…
(४)
बड़े शौक़ से आकर सीखो
तुम इस पर निशानेबाजी
कोई तख्ती हो या न हो
एक शायर की छाती तो है…
(५)
करवट बदल कर अपनी
फिर सो जाते लोग तो क्या
उन बहरों के कानों तक
हमारी हांक जाती तो है…
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Shekhar Chandra Mitra
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