सुन मैं पुकार रहा हूँ…
सुन मैं तुझे पुकार रहा हूँ,
अकेला रह गया हूँ,
फ़िर भी तेरे बिन जिंदगी के,
कुछ दिन गुज़ार रहा हूँ ।
मुझे तो एहसास भी न था,
तू नाराज़ भी होता है,
मन मेरा मस्तिष्क भी क्या,
तुझसे न कभी जुदा था ।
तुझे क्या अच्छा लगता है,
माँ का दिल यूँ तड़पता है,
लाल मेरा क्या रूठ गया,
जो कभी न बातें करता है ।
क्यूँ हुआ नाराज़ यूँ मुझसे,
दोष मेरा बतला तो ज़रा,
बेरुख़ी भी इतनी ठीक नहीं,
क्या नहीं था मैं तेरा दोस्त खरा ।
तेरे साथ मैंने जी है ज़िन्दगी,
पास मेरे अब कुछ तो नहीं,
ना तो वो मुस्कान बची है,
यादों के सिवाय अब कुछ तो नहीं ।
वक़्त थोड़ा तू ठहर जाता,
मैं मिलन यार से कर लेता,
अब मुझे ये दुःख खायेगा,
काश मैं कुछ तो कर पाता ।
दर्द मेरा शायद कोई अब समझे,
मैं कैसे तन्हा रह लुँगा,
“रोहित”, “अशोक” मेरे मन बसे,
तुम्हारी यादों का झरोखा सजा लुँगा ।