सुन ओ बारिश कुछ तो रहम कर
*** सुन ओ बारिश कुछ तो रहम कर ***
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सुन ओ बारिश किसान पर कुछ रहम कर,
डूब रही अथक मेहनत कुछ तो रहम कर।
लहराती फसलें देख खुश होता रहता मन,
हो गया है पानी – पानी कुछ तो रहम कर।
कर्जे में है डूबा हलधर सिर से पांव तलक,
कहीं करे न आत्महत्या कुछ तो रहम कर।
मिट्टी में मिट्टी हो कर हैं कुछ ख्वाब सजाए,
स्वप्न मत कर चकनाचूर कुछ तो रहम कर।
कड़कड़ाती धूप में कर काम तन जलाया,
मिल जाए परिश्रम फल कुछ तो रहम कर।
बेटी का कर ब्याह साहूकार कर्ज चुकाना,
माटी में मत मोल घोल कुछ तो रहम कर।
मनसीरत कर कीरत जग का पेट भरता,
भूखा रहने को मज़लूम कुछ तो रहम कर।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)