सुन्दरता।
मन को मोहित करने वाली
सुंदरता ढल जाती है,
अरी नाज से भरी जवानी
क्यों इतना इठलाती है।
माना इस लावण्य-राशि पर
नत होता संसार अभी,
अंग-अंग में सदा सयानी
बहती है रसधार अभी।
मादकता से भरी बावरी
राग-रंग सब क्षणिक यहाँ,
कोमलता, कमनीय अदा पर
गर्व न करना तनिक यहाँ ।
मंत्रमुग्ध जग करने वाली
रूप-रश्मि का अंत हुआ,
मुरझाये वन के फूलों पर
फिर से कहाँ वसंत हुआ।
अनिल मिश्र प्रहरी ।