सुनो…
सुनो, ये क्या हाल बना रखा है,
एसे क्यों मुंह फुला रखा है??
जाओ, एसे दिखावा मत करो,
झूठे ही मन मत रखो…
आपने कहा था, जल्दी आओगे,
मुझे बाहर ले जाओगे.
अच्छा !!! मैंने एसा कहा था??
कब?? याद तो नहीं आ रहा है.
हाय…
ये बात गले में हड्डी की तरह अटक गयीं हैं,
न अंदर जा रही हैं, ना बाहर आ रही हैं.
अब तो कोई, पर्याय नहीं है,
बाहर जाने के सिवाय नहीं है.
मुझे बाहर ले जाना होगा,
कैसे भी मनाना होगा.
बड़ी ही चालाकी से, पत्नी बात मनवाती हैं,
हम जीना भूल न जाएं,
हमें जिंदगी की तरफ लातीं हैं.