सुनो मुरारी–हास्य कविता
सुनो मुरारी
अधेड़ उमिर, झुका शमशीर,
पर मन में सरगम पुरबईया ।
चौराहे पर खड़े चौधरी,
खबरों के बड़े खेवैया।
कहते,मैडम के चक्कर मे
मनसुख बने गवैया।
आँख बंद और डब्बा गोल,
बीच भँवर में डावांडोल,
हो न जाये कहीं नैया।
कहे जवारी, सुनो मुरारी,
अब न मिलेगी कोई कजरारी,
चाहे कर लो ता, ता, थैया।
कड़वी बातें, है दो टूक,
दूजा नहीं कोई और मटुक,
सुधार लो गुरु,रवैया।
–नवल किशोर सिंह
16-08-2018