सुनो मुरलीवाले
सुना है मथुरा, गोकुल, वृंदावन को
घनघोर बारिश से बचाने के लिए
तुमने एक उँगली पर गोबर्धन पर्वत उठा लिया था।
सबको इंद्र के दंड से बचा लिया था।
जब दुर्योधन के मन में बदले की भावना आई थी।
तब द्रोपदी की साड़ी बढ़ाकर तुमने लाज बचाई थी।
और हाँ ये भी सुना है
कि माखन खाने के लिए तुमने मटकी फोड़ दी थी।
वकासुर जैसे कितने ही राक्षसों की गर्दन मरोड़ दी थी।
क्या तुम्हारे जमाने में
मटकी फोड़ने की छूट थी?
या राक्षसों की गर्दन मरोड़ने की रीत थी।
अरे अब तो मटकी छू लेने पर भी
जान से मार दिया जाता है।
और दुष्कर्मियों का माला पहनाकर सम्मान किया जाता है।
ये भेदभाव क्यों, किसलिए मुरलीवाले?
अब आकर इस मटकी को फोड़ो
निर्दोषों को मारने वाले राक्षसों की गर्दन मरोड़ो।
एक बार फिर आकर इंसानियत का पर्वत उठाओ।
और इन जातिवादी राक्षसों के प्रकोप से बचाओ।
और हाँ! द्रौपदी की साड़ी बढ़ाने के बजाए
दुष्कर्मियों पर सुदर्शन चक्र चलाओ।
सुनो मुरलीवाले!
जब तुम यह करके दिखलाओगे
मैं तब तुम्हारी लीला सच जानूँगा।
वरना तुम्हें भी इस व्यवस्था में शामिल मानूँगा।
-रमाकांत चौधरी
उत्तर प्रदेश।
(रचना स्वलिखित मौलिक अप्रकाशित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है)