सुनो पहाड़ की…..!!! (भाग – ६)
जंगल की तरफ जाता हुआ यह रास्ता सुनसान या असुरक्षित बिल्कुल नहीं था। यह शहर की सड़क की भांति ही एक चलता हुआ रास्ता था, जहाँ पर कारों व टैक्सियों इत्यादि का लगातार आवागमन था। रास्ते के एक ओर पहाड़ व दूसरी ओर जंगल तथा बीच में रास्ता होकर गुजर रहा था। हम आगे बढ़ रहे थे। लेकिन अमित का मूड इस तरफ जाने का नहीं हो रहा था। उसे लग रहा था कि हम बेमतलब ही खुद को थका रहे हैं क्योंकि हमें मंदिर तो जाना नहीं था। वैसे भी शाम का समय था, ऐसे में पैदल जंगल की ओर जाने में खतरा हो सकता था और फिर हमारा समय भी बेकार जा रहा था। इतनी देर में हम ऋषिकेश के कुछ और स्थान घूम सकते थे। लेकिन अर्पण अपनी धुन में था। वह आगे बढ़ते हुए हमें इस रास्ते पर अपनी पुरानी यात्राओं के किस्से बताते हुए चला जा रहा था।
मुझे भी न जाने क्यों इस शान्त से माहौल में अच्छा महसूस हो रहा था। चलते हुए बीच में अर्पण व अमित तस्वीरें भी खींचते रहे और बातचीत भी लगातार चल रही थी। कभी चर्चा रास्ते पर गुजरती गाड़ियों तो कभी नीलकंठ महादेव मंदिर व काँवड़ यात्रा की, इन सब विषयों पर बातचीत करते हुए हम आगे बढ़ते चले जा रहे थे।
इस तरह हम जंगल वाले रास्ते पर काफी आगे बढ़ गये, तब मैंने अर्पण और अमित से लौटने को कहा क्योंकि शाम बढ़ रही थी। जल्दी ही अंधेरा होने लगता, ऐसे में अक्सर जंगली जानवरों का भी रास्ते की ओर निकल आने का खतरा बना रहता है। इस विचार से हम वापसी के लिए लौट पड़े। लौटते समय हमारा बातचीत व तस्वीरें खींचने का सिलसिला जारी था कि अचानक अर्पण की नजर जंगल से सड़क की ओर आये एक जानवर पर पड़ी और उसने मेरा व अमित का ध्यान उसकी ओर आकर्षित करने के लिए हमें उधर देखने को और उसकी तस्वीर खींचने को कहा। मैंने देखा कि यह हिरण का बच्चा था, जो रास्ते की ओर निकल आया था। लेकिन इससे पहले कि हम मोबाइल में उसकी तस्वीर ले पाते, हमारी आवाजें सुनकर यह एक ही छलांग में जंगल में कहीं गुम हो गया।
जंगल की ओर जाते समय हमारी चर्चा का विषय भगवान शिव व उनका मंदिर सहित पहाड़ एवं जंगल था। किन्तु वापसी में बात मुख्य रूप से हिरण के बच्चे व उसकी तस्वीर न ले पाने पर केन्द्रित होकर रह गयी।
(क्रमशः)
(पष्टम् भाग समाप्त)
रचनाकार :- कंचन खन्ना, कोठीवाल नगर,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक :- २५/०७/२०२२.