सुनो तुम नारी हो
सुनो तुम नारी हो
समाज,प्रथा
रीतियां,चलन
और व्यवस्था की मारी हो ।
व्यवस्था के नाम पर,
सामाजिक
पारिवारिक
शैक्षिक स्तर पर न कभी हारी हो ।
तुम्हें देखना है
घर – परिवार
समाज -संसार
फिर भी तुम न किसी की प्यारी हो ।
मुझे लगता है कि
तुम्हें तोड़ना चाहिए
दायरा घर – गांव
परिवार – समाज का जिससे तुम हारी हो ।
कभी कभी तो लगता है
कि तुम बहुत सुंदर
सुशील,सुयोग्य बन
सुशिक्षित समाज की नारी हो ।
अब तो तुमको मिल गया है
अधिकार कहने का
समाज से लेने का
पढ़ने -लिखने की तुम अधिकारी हो ।