सुनो … कुछ कहूं क्या
सुनो… कुछ कहूं क्या?
मत जाओ… गांवों की तरफ़
मत बोओ मौत खुली वादियों में
पेड़ पहाड़ नदी नाला, खेत खलिहान
सब मर जाएंगे, सब खारे हो जाएंगे
जाना चाहते हो… तो चुनों फिर से
चुने हुए लोगों का घर
जिस ने आश्वस्त किया था तुम्हें
हम हैं न… तुम्हारे दुख सुख में खड़े होने के लिए
सुनो… उन चुने हुए लोगों को ही चूनों
जाने के लिय…
तुम ने उन्हें सब कुछ दिया
अब उन की बारी है
मौत से लडने की उनकी पूरी तैयारी है
सुनो न… तुम उन्हें ही चुनो न…
~ सिद्धार्थ