“सुनो एक सैर पर चलते है”
चलो एक सैर पर चलते है,
यादों की किताब को फ़िर से खोलते है,
उन बच्पन के दोस्तों के साथ एक महफ़िल जमाते है,
उस महफ़िल में स्कूल के किस्सों को दोहरा के एक बार फ़िर से मुस्कुराते है,
स्कूल की तरफ चलते है देखते है क्या वहाँ हमारी हाँसी आज भी खिल- खिलाती है,
अपनी पुरानी क्लास में चलते है वहाँ वो सबसे पीछे वाली बेंच पर बैठ के देखते है, बेपाक वो शरारत भरे पलों को इन लमहों में जी कर देखते है,
उन सड़कों में फ़िर से चलके देखते है, आओ उन सड़कों में फ़िर से दौड़ते हुए खेलतें है,
पहाड़ों में गुज़रते है कुछ शामें और महसूस करते है हमारी यादें क्या फ़िर से टकरा के वापस आती है,
घर से स्कूल तक का सफ़र फ़िर से करते है और रास्ते में जलेबी समोसे और वो दिल-बहार छोले फ़िर से चख कर देखते है,
दोस्तों को गले लगा के देखते है, वक़्त के सब बदल गए है या याराना आज भी बच्पन वाला रखते है,
याद है मुझे आज भी स्कूल का वो आँखरी दिन जब वादें हज़ार हो रहे थे, वक़्त के मोहताज़ नहीं रहेंगें, दोस्तों हर साल मिलते रहेंगें, सुनो उन वादों को पूरा करते है,
चलो एक सैर पर चलते है,
यादों की किताब को फ़िर से खोलते है।
“लोहित टम्टा”