सुनो ! आज इतवार है न
सुनो आज इतवार है न !
रजाई मुस्कुराती…धुप मुझे छुती और मैं लंबी सांस लेता;
इससे पहले…..इतनी लम्बी लिस्ट…ओह
और तभी
तुम्हारे शौक भी तो बड़े है…
ये जो मण्डे टु फ्राइडे ख्वाबों की तरह जीते हो;
पता भी नहीं होता…घड़ी की सुइयों के अलावा
समय और भी रास्तों से होकर भी गुजरता है,
पूरे दिन सप्ताह महीने…
क्या…..अब ऐसे मत देखो!
हाँ पता है हमें
तुम कहोगे आज सुबह सुबह ये बादलों का रुख मेरी तरफ क्यूं ?
तुम तो जान हो मेरी और मुँह बनाओगे ऐसे; जैसे जुल्म कर रहे हैं हम तुम पर…
तुम भूल जाते हो
आज इतवार है…न :)
“बस वो बोलती जा रही थी निर्विरोध जैसे आज उसने ठान लिया था…..आज नहीं छोड़ना……शोर तो शोर जैसे उसकी खामोशी भी शोर बनकर मेरे कानों में गुंज रही थी,
कैसे भूल सकता हुँ उसका ये कहते हुये बिफर उठना”
आज इतवार है…न।
उस हाँ ; हर उस लम्हें का हिसाब लेना है;
जिसे जिया है तुम्हारी वजह से पर तुम्हारे बिना बस अहसासों को साथ लिये,
और तुम
जिसे परवाह ही नहीं…याद दिलाओ तो अकड़ते हो ऐसे जैसे किसी ने खलल डाल दी हो
मीठी सी नींद में,
प्यार मोहब्बत की वो जो बड़ी बड़ी बातें जो तुम किया करते थे…..न…..
न होश बस मदहोश;
और तुम्हारी वो बातें
इससे पहले कि हम उससे बाहर निकल पाते,
ऐसा अदृश्य दिवार खींचा था तुमने
हमारे इर्दगिर्द,
जैसे शीशा लगा हो उसमें कोई,
बस तुम…..तुम दिखते थे हमें…हमारे चारो ओर,
ऐसा भी नहीं जबरदस्ती जैसा था कुछ…हम तो आजाद थे पर कुछ तो किया था तुमने…कुछ तो किया था…आता था तुम्हें
बिन परिधि ही घेरा डालना…जिसे तुम मुस्कुरा कर बस मोहब्बत कहते थे…..हाँ…..हाँ….हमें याद है;
शोर से ज्यादा तो तुम्हारी खामोशी ही कह देती है।
जैसे कोई और चाह ही नहीं हमें तुम्हारे होने के सिवा
और ईकदिन शहनाई बज उठी,
हमेशा के लिये हमें तुम्हारे साथ एक सफर में बांध कर,
जैसे सारे जहाँ ने मिलकर पढ़े थे हमारे मण्डप में वो मंत्र…
हर लम्हा हमें ;तुम्हारे करीब और करीब लाता जा रहा था…ऐसा आसपास खडा़ हर श्रृंगार कह रहा था…वो मंगलगीत जैसे हमारे सपनों को पंख दे उसमें रंग भर रहे हों…?
तुम्हें याद है…..न !
और वो सवाल जो वो आंटी ने तुमसे पूछा था…..सुबह जब लेकर जाओगे इस उड़नतश्तरी को…तो आने भी दोगे या नहीं ?
जानते हो…..न
एक वो और आज का दिन,
मजाल है…हमने जिया हो तुम्हारे बिना एक लम्हा,
जो गुजरे हों हम तुम्हारे बगैर,
अच्छ…सुनो !
ज्यादा…… तो नहीं बोल रहे…न…हम
और जो बोल भी रहे तो क्या
वो
आज इतवार है…..न
“मन करता है कभीकभी… इन सितारों की बस्ती से थोड़ी मोहलत मिलती और जाकर दो थप्पड़ लगाउं तुम्हें…पुछूँ…
जब सारे जहाँ ने मान लिया…..तुम क्युं नहीं मान लेती
नहीं हुँ अब मैं…….फिर अचानक तुम्हारी आवाज जैसे इर्दगिर्द गुंजती हो……
सुनो! आज इतवार है…न
©दामिनी ✍
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