सुनसान राह
हम राही सुनसान पथ के
अविराम बढ़ते जाते -आगे
त्रुटि पंथ को छोड़ चले हम
कर्म पंथ के पथ पे चल पड़े ।
हम राही सुनसान पथ के
आघात खा -खाकर हम
गिरते पड़ते संभलते जाते
अपनी निर्दिष्ट की ओर हम ।
हम राही सुनसान पथ के
तनहा ही हम इस जहां में
न कोई रहता मेल हमेशा
अयुज ही जाते खलक से ।
हम राही सुनसान पथ के
कोई न अपना इस भव में
पढ़ाई-लिखाई, कॉपी-किता
यही विधुर, बस बंधु हमारा ।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार