सुनते जब शब्द ‘ नहीं ‘ ।
एक बार फिर से ‘नहीं’,
शब्द है ये वही,
करता है घायल भी,
अगर तुम भयभीत हुए।
जीवन में छलके पीर,
दुःख होगा अति गंभीर,
चिंता में खोए धीर,
सुनते जब शब्द ‘ नहीं ‘ ।
दुनियाँ की रीत अज़ीब,
सुख देख के जलेंगे मीत,
प्रीत जब बदल जाए,
हाँ से जब ‘नहीं ‘ हो जाए।
हारना नहीं सुन के ‘नहीं ‘
बनोगे और भी मजबूत,
सकारात्मकता आशा की किरण,
हारते नहीं यूँ वीर , ‘नहीं ‘ को सही करें।
बारम्बार करना है प्रयास,
ऊर्जा का करो संचार,
होगा फिर एक बार तो ‘हांँ ‘ ,
‘नहीं’ रहेगा नकारात्मकता का भाव।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर (उoप्रo) ।