सुधार का सवाल है
प्यार एक तिलिस्म
झूठ फरेब स्वार्थ का ख्याल है
विज्ञान मे ये कुछ नही
देहाकर्षण मात्र है
घनात्मक उर्जा द्वारा
ऋणात्मक उर्जा के
चारो ओर बुना हुआ जाल है
रंग रूप चेहरा शरीर
लगता सांचे मे ढला
मनभावन बातें
कानों मे अमृत घोलती
मोहपाश भ्रम जाल है
बने एक दूजे के लिए
यथार्थ नही होता बेमेल
शारीरिक मानसिक सुख
ये भूख और प्यास
खूबसूरत मायाजाल है
भावनाओं का अतिरेक
बिन सोचे समझे
करते वादे नादान
पूरा करने मे लग जाना
दिमागी दिवालियापन का हाल है
विद्रोह विछोह स्वजनो से
कुछ पल के सुख को
कांटो भरी राह
समझ नही आती
कष्ट मे खुश रह पाना
खुद को त्रासित करने का जंजाल है
अहं जगाता टकराव
मोह भंग हो जाता
भ्रम के जाले को काट
मुक्त पंछी की भांति
भंवर से निकलने का आता ख्याल है
कुछ अहं को दबाते
कुंठा मे जीते
निराशा मे जैसे-तैसे
जीवन यापन करते
आने वाले कल मे सुधार का सवाल है
स्वरचित मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर
काव्य कुमुद द्वारा प्रसंशित, साझा काव्य संग्रह मे प्रकाशित