सुधरते हालात ( कोरोना के परिप्रेक्ष्य में )
(कोरोना पीड़ितों को समर्पित)
मुश्किल है हालात…
मुश्किल हैं वक़्त…
गुज़र रहा है…
जल्द ही गुजर जाएगा…
अभी पतझड़-सा मौसम है…
बगीचे सुनसान, हैरान और परेशान हैं…
किन्तु टहनियों में हलचल है…
शायद नयी कोंपले निकलने वाली हैं…
रूठी हुई हरियाली …
लगता है अब अपने घर आने वाली है …
अब किराएदार पतझड़…
बिना पैसों के पराये मकान में ….
कितने दिन टिक पाएगा…
अपना सामान समेट चुका है…
उम्मीद है जल्द ही…
चुपके से निकल जाएगा…
मुश्किल है हालात…
मुश्किल है वक़्त…
गुजर रहा है…
जल्द ही गुजर जाएगा…
अब तो पड़ोस की बगिया में…
कोयल की कुक भी…
अक्सर सुनाई देने लगी है…
उसी बगिया की चुनमून चिड़िया भी…
झरोखे पे आकर गुनगुनाने लगी है…
आँगन मे भौंरे तलाश रहे हैं…
अमिया की डालियों पर मंजरियों की…
लगता है अब…
ये खौफनाक मंजर निकल रहा है…
जल्द ही निकल जाएगा…
मुश्किल है हालात…
मुश्किल है वक़्त…
गुज़र रहा है…
जल्द ही गुज़र जाएगा…
अब तो आसमान में…
काले, घने खौफनाक बादल भी छँटने लगे हैं…
पूरब दिशा में…
आशातीत अरुणिमा भी दिखने लगी है…
चारों ओर स्वच्छ हवा का…
संचार होने लगा है…
डरे हुए बेबस मन पर…
निडरता अब भारी पड़ने लगा है ….
अब यह क्षद्मवेशी तिमिर…
कब तक ठहर पाएगा…
उम्मीद का धैर्यवान दीपक अब जल चुका है…
यह बहुरूपिया तो यूँ ही भाग जाएगा…
मुश्किल है हालात…
मुश्किल है वक़्त…
गुज़र रहा है…
जल्द ही गुज़र जाएगा…
✒✒✒#कुमार_राजीव (#अप्पू)