सुदर्शन क्रिया
सुदर्शन क्रिया
वर्ष 1981 में श्री श्री रविशंकर जी द्वारा आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने हेतु अनेक कार्यक्रम बनाना व उनके द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को लाभ पहुँचाना है। आज इस सुदर्शन क्रिया के द्वारा विश्व के प्रत्येक देश के नागरिक लाभान्वित हो रहे हैं।और देश विदेश में भिन्न भिन्न खेल प्रशिक्षक अपने खिलाड़ियों का कॉनसन्ट्रेशन बढ़ाने के लिए भी इसे अपना रहे है।प्रकाश पादुकोण अकादमी के प्रत्येक खिलाड़ी को सुदर्शन क्रिया नियमित रूप से करना अनिवार्य है।
आर्ट ऑफ लिविंग के अनेक कार्यक्रमों में से ही एक है सुदर्शन क्रिया जो कि सांसों की तकनीक के द्वारा की जाती है।वर्ष 2017 से पहले मुझे सुदर्शन क्रिया के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और पेशे से खिलाड़ी होने के कारण मुझे कभी यह एहसास भी नहीं हुआ कि जीवन में कभी योग या ध्यान की आवश्यकता भी पड़ेगी क्योंकि खिलाड़ी होने की वजह से सालों से भागदौड़ व व्यायाम मेरे जीवन का हिस्सा बन गए थे। परंतु पिछले कुछ सालों से मेरी पत्नी ममता अग्रवाल का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था और गृहकार्यो में उलझी होने के कारण प्रत्येक दिन भागदौड़ व व्यायाम के लिए ले जाना भी संभव नहीं था इसलिये मैंने व मेरी पत्नी ने अपने ही प्रांगण (भारतीय खेल प्राधिकरण, गांधीनगर) में चलने वाले आर्ट ऑफ लिविंग केंद्र पर जाकर हैप्पीनैस कार्यक्रम के लिए नामांकन कराया 6 दिन तक चलने वाले इस हैप्पीनैस कार्यक्रम में भारतीय खेल प्राधिकरण के उपनिदेशक श्री वीर सिंह चौहान जी जो कि आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के योग्य टीचर भी हैं उनके द्वारा प्रत्येक दिन शाम को 6 से 9 बजे तक सुदर्शन क्रिया की बारीकियां सिखाई जाती थी।सुदर्शन क्रिया सीखने से अब तक मैं और ममता प्रत्येक दिन घर पर सुदर्शन क्रिया करते है और इस क्रिया को प्रतिदिन नियमित रूप से करने के आश्चर्यजनक परिणाम भी हमारे को देखने को मिले इसका सबसे बड़ा उदाहरण मैं खुद हूँ बचपन से लेकर आज तक भी प्रत्येक दिन घूमना फिरना, भागना दौड़ना व व्यायाम करना मेरे जीवन का हिस्सा है फिर भी वर्ष 2014 में मुझे बाई पास सर्जरी से गुजरना पड़ा लेकिन 2017 से अब तक प्रत्येक दिन सुदर्शन क्रिया करने के कारण मैं और ममता अत्यंत लाभान्वित हुए हैं और अपने इस अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि प्रत्येक व्यक्ति को जल्द से जल्द सुदर्शन क्रिया सीख कर उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए क्योंकि मेरा यह भ्रम दूर हो गया है कि प्रत्येक दिन सुबह शाम व्यायाम करने अथवा खेलने वाले व्यक्ति को योग अथवा ध्यान की आवश्यकता नहीं होती बल्कि अब मैं यह कहता हूँ कि प्रत्येक दिन सुदर्शन क्रिया करने वाले व्यक्ति का जीवन बहुत ही आरामदायक व सुखमय हो जाता है क्योंकि उसे व उसके परिजनों को स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
विजय बिजनौरी